Shiv chaisa - An Overview
Shiv chaisa - An Overview
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देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
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मंत्र महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि
अर्थ: हे शिव शंकर भोलेनाथ आपने ही त्रिपुरासुर (तरकासुर के तीन पुत्रों ने ब्रह्मा की भक्ति कर उनसे तीन अभेद्य पुर मांगे जिस कारण उन्हें त्रिपुरासुर कहा गया। शर्त के अनुसार भगवान शिव ने अभिजित नक्षत्र में असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण चलाकर उनका संहार किया था) के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।
O Lord, whenever the Deities humbly sought your aid, you kindly and graciously uprooted all their Troubles. You blessed the Deities along with your generous help in the event the Demon Tarak outraged them therefore you destroyed him.
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
Whosoever delivers incense, Prasad and performs arati to Lord Shiva, with enjoy and devotion, enjoys content joy and spiritual bliss On this planet and hereafter ascends for the abode of Lord Shiva. The poet prays that Lord Shiva removed the struggling of all and grants them Everlasting bliss.
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल Shiv chaisa दुःख हरहु हमारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
जय जय जय अनंत Shiv chaisa अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥